
बर्फ से आच्छादित पहाड़, ठंडी हवाएं, दिलकश नजारे, रूमानी मौसम- यूरोप का नाम सुनकर आम तौर पर ये तस्वीर ही जेहन में उभरती है. यही कारण है कि भारत में तेज गर्मी वाले मौसम में समृद्ध तबके के लोग यूरोपीय देशों की ओर रुख कर लेते हैं. यदि आप भी इस तरह की योजना बना रहे हैं तो थोड़ा रुक जाइए. दरअसल, यूरोप में मौसम का मिजाज इन दिनों बदला हुआ है. बर्फबारी के अभ्यस्त यूरोपीय देशों के लोग इन दिनों हीट वेव झेल रहे हैं. ठंडी हवाओं की जगह लू के गर्म थपेड़े और दिलकश नजारों की जगह जंगली आग ने ले ली है. हालत ये है कि यूरोप के 12 शहरों में हाल में खत्म हुई हीटवेव में 2,300 लोगों की जान गई है. इंपीरियल कॉलेज लंदन और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने यूरोप की भीषण गर्मी पर ये रिसर्च की है. यह अध्ययन 2 जुलाई को खत्म हुई 10 दिनों की हीटवेव पर किया गया है. 10 दिन की इस अवधि के दौरान पश्चिमी यूरोप के कई बड़े हिस्से भीषण गर्मी की चपेट में रहे. अध्ययन में कहा गया है कि 2,300 में से 1,500 मौतों की वजह जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है. शोधकर्ताओं ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान में 4°C तक की वृद्धि हुई.
पश्चिमी यूरोप मे भीषण गर्मी
इस अध्ययन में लंदन, पेरिस, फ्रैंकफर्ट, बुडापेस्ट, जाग्रेब, एथेंस, बार्सिलोना, मैड्रिड, लिस्बन, रोम, मिलान और सासारी को शामिल किया गया. अध्ययन के मुताबिक पश्चिमी यूरोप का बड़ा हिस्सा खासतौर से भीषण गर्मी की चपेट में रहा. मिलान, पेरिस और बार्सिलोना में इस अतिरिक्त गर्मी के कारण सबसे ज्यादा मौतें हुईं, जबकि सासारी, फ्रैंकफर्ट और लिस्बन में इसका असर अपेक्षाकृत कम रहा. इस दौरान स्पेन में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस (104°F) को पार कर गया तो फ्रांस में जंगलों में गर्मी की वजह से आग लग गई. लिस्बन को छोड़कर सभी शहरों में जलवायु परिवर्तन के कारण 2 से 4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ा, जिससे हीटवेव और खतरनाक हो गई. लंदन में सबसे ज्यादा चार डिग्री तक का अतिरिक्त तापमान दर्ज किया गया. अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौतों में से 1,100 से अधिक लोग 75 वर्ष से ऊपर के थे. गर्मी के कारण मृत्यु को आमतौर पर हार्ट अटैक, फेफड़ों की बीमारी या अन्य समस्याओं के रूप में दर्ज किया जाता है, इसलिए इसकी असली संख्या सामने नहीं आती.
साइलेंट किलर है हीटवेव
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के अनुसार जून 2025 में यूरोप में दो गंभीर हीटवेव का प्रकोप देखने को मिला. पहली लहर 17 से 22 जून के बीच और दूसरी 30 जून से 2 जुलाई तक रही, जिसने तापमान को रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचा दिया. पश्चिमी यूरोप में जून का महीना अब तक का सबसे गर्म रहा, जिसमें सतह के पास तापमान 2.81 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा. स्पेन के कुछ हिस्सों में तापमान 45 डिग्री तक पहुंच गया. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, गैस और पेट्रोलियम के दहन से तापमान में औसतन 4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हुई है, जिससे हीटवेव से होने वाली मौतें तीन गुना तक बढ़ गई हैं. अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि हीटवेव साइलेंट किलर होती है. जलवायु परिवर्तन से हीट वेव का खतरा कई गुना बढ़ गया है. तापमान में हर एक डिग्री का इजाफा इंसानी जीवन को और जोखिम में डाल रहा है. समय रहते फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल कम नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में गर्मी और ज्यादा जानें ले सकती है